कृष्ण बिहारी नूर की शायरी | Classical Sher Shayari - Krishna Bihari Noor

8 नवम्बर 1925 को लखनऊ में जन्मे कृष्ण बिहारी 'नूर' की गिनती उर्दू के बड़े शायरों में होती है। आरंभिक शिक्षा घर पर ही होने के बाद उन्होने उस जमाने में बीए तक शिक्षा प्राप्त की और लखनऊ के ही आर एल ओ दफ्तर में नौकरी जॉइन कर ली। साल 1984 में वे वहीं से सहायक प्रबन्धक के पद से सेवानिवृत हुये। मई 2003 में नूर साहब ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 

कृष्ण बिहारी 'नूर' देश भर में होने वाले मुशायरों और कवि-सम्मेलनों में शिरकत किया करते थे और बड़े चाव से सुने जाते थे। उन्होने न सिर्फ उर्दू गजल को  नई ऊंचाईयाँ प्रदान कीं बल्कि वे हिन्दी गजल के भी एक महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ थे । 

'दुख-सुख', 'तपस्या', 'समंदर मेरी तलाश में है', 'हुसैनियत की छांव मे' आदि उनके प्रसिद्ध ग़ज़ल और नज़्म संग्रह हैं। 

प्रस्तुत हैं कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब के कुछ प्रसिद्ध चुनिन्दा शेर - 

ज़िंदगी से बड़ी सजा ही नहीं 
और क्या जुर्म है पता ही नहीं 

तश्नगी के भी मुकामात हैं क्या क्या यानी 
कभी दरिया नहीं काफ़ी कभी कतरा है बहुत

आईना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगर
आईना इस पे हैं खामोश कि क्या है मुझमें 

आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें
और फिर मानना पड़ता है के खुदा है मुझमें 

मैं जिसके हाथ में इक फूल दे के आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है 

मुसकुराते हो मगर सोच लो इतना ऐ 'नूर'
सूद लेती है मसर्रत भी महाजन की तरह 

नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद 

दरिया में यूँ तो होते हैं कतरे-ही-कतरे सब
कतरा वही है जिसमें कि दरिया दिखाई दे 




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