सालूमरदा थिमक्का … जी हाँ, यही नाम है उनका. कर्नाटक की हैं और राज्य के रामनगर जिले में हुलुकल और कुडूर के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ करीब चार किलोमीटर की दूरी में अब तक 384 बरगद के पेड़ लगा चुकी हैं.
जीवन के खालीपन को दूर करने के लिए पेड़ लगाना शुरू किया और फिर यह उनका जूनून बन गया. एक एक करके 384 बरगद के वृक्ष लगा दिए.
तो ऐसा नहीं है कि उनके इस काम को किसी ने नोटिस न किया हो ! अनेकों अवार्ड पुरुस्कार मिल चुके हैं उन्हें. 1995 में नेशनल सिटीजन्स अवार्ड तो 1997 में इंदिरा गाँधी प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र अवार्ड और वीरचक्र प्रशस्ति अवार्ड.
साल 2000 में कर्नाटक कल्पवल्ली अवार्ड मिला तो 2006 में गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया गया.
सम्मानों की फेहरिस्त और भी लम्बी है. श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ़ लिविंग द्वारा भी उन्हें विशालाक्षी अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.
और बात सिर्फ सम्मानों की नहीं है. प्रकृति की सेवा करने में, उसके सानिध्य में जो आनंद है वह और कहीं नहीं है. लगता है थिमक्का इस बात को अच्छी तरह से समझ गईं हैं तभी तो पेड़ पर पेड़ लगाए जा रहीं हैं.
उनके इस अद्भुत, अनुपम प्रयास को गुस्ताखी माफ़ का नमन !
(स्रोत – फेसबुक)